Ambala Ka Itihas
: बहुत समय से मन में इच्छा थी कि अम्बाला के गौरवमयी इतिहास के विषय में कोई इस तरह की पुस्तक लिखी जाए जिसमें अम्बाला की विरासत और वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डाला जाए । इसी सपने को संजोए " अम्बाला का इतिहास " लिखने की कोशिश करता , परंतु साहस न होता । मन में तरह - तरह की शंकाएं उत्पन्न होतीं कि क्या मैं अपनी मातृभूमि अम्बाला जिसके कण - कण में मीठी सुगन्ध है , जहां समय - समय पर अनेकों महापुरूषों , गुरूओं , पीरों , फकीरों व भक्तों ने आपसी प्यार व भाईचारे का संदेश दिया , यह अम्बाला की धरती अपनी पावन मिट्टी में ' वामन भगवान व राजा बलि की यादें संजोए बैठी है , ' माँ भवानी अम्बिका देवी के आशीर्वाद से बने इस पावन शहर अम्बाला की पवित्र धरती पर ही सिखों के दसवें गुरू गुरू गोविन्द सिंह महाराज ' ने चिड़ियों से बाज लड़ाकर जुल्म के विरूद्ध लड़ने का संदेश दिया था और ' चिड़ियों से में बाज लड़ाऊं तभी गोबिन्द सिंह नाम कहाऊं की पंक्ति को चरित्रार्थ किया था , बाबा बन्दा सिंह बहादुर द्वारा इसी धरती पर विशाल खालसा इकठ एकत्रित किया व जुल्म के विरूद्ध आवाज बुलन्द की, इसी सरज़मीं पर जैन समाज व आर्य समाज ने शिक्षा की ज्योति जगाई , अम्बाला की इसी तपोभूमि पर आजादी के हजारों परवानों ने फांसी के फंदे को चूम लिया , आज़ादी की लड़ाई का मूक साक्षी अम्बाला , सभी धर्मों व जातियों के प्यार व भाईचारे को अपने हृदय पटल पर संजोने वाली महान धरती के विषय में क्या में लिख पाऊंगा , यही सोच कर कई बार अपने मन में मंथन करता था , इसी मनोकामना को संजोए जब मैंने अपने पिता सरदार जोगिन्द्र सिंह आहलूवालिया ' जी तथा अपने छोटे भाई कमलजीत सिंह वालिया ' बॉबी " से बात की तो उन्होंने मेरा मार्ग दर्शन करते हुए मुझे और उत्साहित किया और यह कार्य तुरन्त आरम्भ करने के लिए कहा और इस पुनित कार्य में आरम्भ में मुझे पूर्ण सहयोग दिया , उन्हीं के आशीर्वाद से अम्बाला की बिखरी स्मृतियों को शब्दों की माला में पिरोने की कोशिश की है । इस पुस्तक को कई वर्षों की मेहनत से तैयार करके आप सभी तक पहुंचाने में कदम - कदम पर साथ रही मेरी धर्म पत्नी श्रीमती दीप वालिया ' , जिसने इस पुस्तक का बखूबी सम्पादन भी किया है , इंटेक संस्था की ' डॉ ० किरण आंगरा ' श्रीमती रीना नागरथ ने भी मेरा इस कार्य में पूर्ण रूप से सहयोग दिया श्रीमती गुरप्रीत मोंगिया व ' श्रीमती रजनी आनन्द ' , ' डॉ ० अनिमा जैन ' का भी इस पुस्तक के लेखन में काफी योगदान रहा । जब कभी भी में इस पुस्तक के लेखन में सुस्त होता तो इन्होंने बड़ी बहनों की तरह इसे जल्द पूरा करने के लिए प्रेरित किया कई संघर्षमयी कहानियाँ सुना कर मेरा हौसला बुलंद किया इसके साथ ' डॉ ० गुरदेव सिंह ' , ' एडवोकेट दलजीत सिंह पुनिया का तो में एहसान नहीं उतार सकता , उनके ने मुझे नई रोशनी दिखाई । ' श्री कीर्ति प्रसाद जैन ' ' श्री जे.पी. मेहता ' , ' श्री जसदीप बंदी ' , ' एडवोकेट आर.पी. सिंह ' एडवोकेट सुभाष हाण्डा , एडवोकेट मुकन्दलाल ' राजविन्द्र सिंह मोंगिया, राजेश गुप्ता ' , ' गुरूदत शर्मा ' जैसे कई मित्रों ने समय - समय पर अपने बहुमूल्य सुझाव देकर पूर्ण सहयोग दिया , इन सभी का में विशेष रूप से आभारी हूँ । में विशेषरूप से ऋणी हूँ डॉ ० रामेन्द्रा जाखू ' जी का जिन्होंने समय - समय पर अपने सुझाव देकर मेरा मनोबल बढ़ाया धन्यवादी श्रीमती नवराज संधू ' निर्देशक अभिलेखाकार विभाग व ' एम.एस. मान , सहनिदेशक , अम्बाला मण्डल ' डॉ ० एन . एस . कौशल पंजाबी विभागाध्यक्ष कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय का जिन्होंने अम्बाला के विषय में पुरानी व महत्वपूर्ण जानकारी दी । डॉ ० नीलिमा शांगला जी का अति आभारी हूँ जिन्होंने स्वतन्त्रता आन्दोलन के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी के साथ - साथ कई दुर्लभ चित्र भी उपलब्ध करवाए । इस पुस्तक में अम्बाला के पौराणिक इतिहास , पुरातन इतिहास , भौगोलिक , राजनीतिक व शैक्षिक विषयों पर प्रकाश डाला गया है । किसी भी लेखक या इतिहासकार के लिए किसी भी विषय का पूर्ण विवरण देना बहुत कठिन होता है , कोई न कोई त्रुटि रह ही जाती है इसलिए मेरा पाठकों से अनुरोध है कि उन्हें इस पुस्तक में कोई त्रुटि नज़र आए तो लेखक को क्षमा करें व अपने बहुमूल्य सुझाव लेखक तक अवश्य पहुंचाएं ताकि उनको इस पुस्तक के अगले अंक भाग दो में स्थान दिया जा सके जिसमें अम्बाला के व्यापार , खेल - जगत , संचार , यातायात व वर्तमान राजनीतिक स्थिति की जानकारी दी जाएगी ।