डूबते मस्तूल (Hindi Sahitya)

By नरेश मेहता, Naresh Mehta

डूबते मस्तूल (Hindi Sahitya)
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यह उपन्यास सबसे पहले 1949 में लखनऊ में लिखा गया। तब इसका स्वरूप एवं प्रारूप बिल्कुल भिन्न थे। यदि उसी रूप में छपता तो मेरा विश्वास है कि यह कहीं अधिक सशक्त एवं व्यवस्थित होता। लेकिन दुर्भाग्य न केवल व्यक्तियों का ही होता है बल्कि कुछ कृतियों का भी होता है। सन ’49 से लेकर ’53 तक लोगों के परामर्श के फलस्वरूप अनेक परिवर्तन इसमें किये गये, फलतः रंजना, एक असंभाव्य चरित्र बन गयी। सच माने रंजना की यह असंभाव्यता मेरे कारण नहीं हुई। कैसे और क्यों हुई, यह स्वयं मनोरंजन है पर उसकी चर्चा वांछनीय न होगी। अस्तु

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