दक्षिण भारत के गुंटूर जिले के गलीपाडु नामक कस्बे में एक सामान्य गृहस्थ के घर में तेनाली राम का जन्म हुआ था। उसके माता-पिता बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे जिसके कारण उन्होंने अपने पुत्र का नाम रामलिंगम रखा। तेनाली राम यानी रामलिंगम अभी बहुत छोटा था, तभी उसके पिता का निधन हो गया। रामलिंगम की माता पर मानो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। वे अपनी ससुराल ‘गलीपाडु’ से अपने भाई के पास लौट आईं। उनका भाई ‘तेनाली’ नामक कस्बे में रहता था। तेनाली में रामलिंगम सामान्य बच्चों की तरह ही खेलता-पढ़ता हुआ बड़ा होने लगा। उसे गुरु के पास शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा गया, उस समय किसी ने सोचा न था कि अपनी मेधा के बल पर तेनाली राम ऐसी ख्याति अर्जित करेगा कि सदियों, सहस्राब्दियों तक लोग उसकी बुद्धि, न्यायप्रियता और हाजिरजवाबी की कहानियाँ कहते रहेंगे। अपनी कुशाग्रबुद्धि और मिलनसारिता के गुणों के कारण तेनाली राम बचपन में ही लोगों के आकर्षण का केन्द्र हो गए थे। मूल नाम रामलिंगम तो था ही, गुरुकुल में उसे तेनाली वाला रामलिंगम कहा जाने लगा और बाद में यही तेनाली राम बन गए। तेनाली राम के बुद्धि-बल को लेकर इतनी किंवदन्तियाँ हैं जिनसे लगता है कि तेनाली राम जैसा कुशाग्र व्यक्ति दक्षिण भारत में न उनके पहले जन्मा था और न बाद में।